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चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

रविवार, 19 सितंबर 2010

तकनीकी शिक्षा में हिन्‍दी का समावेश कब और कितना

तकनीकी शिक्षा में हिन्‍दी का समावेश होना चाहिये यदि हॉं तो कितना। क्‍या एक इंजीनियर का हिंदी ज्ञान

उसे एक उत्‍कृष्‍ट इंजीनियर बनने में मदद करता हैअथवा यह स्‍वैच्‍छिक एवं वैकल्पिक है।क्‍या हम ऐसे इंजीनियर की कल्‍पना भी कर सकते हैं जो केवल अंग्रेजी जानता हो फिर भी सफल हो ।किस प्रोजेक्‍ट की कहां आवश्‍यकता हैइसका पता आम लोगों से बातचीत से ही लगता है।जहॉं पानी की कमी से किसानों की फसल सूख रही हो टेलीफोन के तार दौड़ाना प्राथमिकता नहीं हो सकती है।इसी प्रकार की अन्य बातें हैं लोगों की समस्‍याओं का ज्ञान उनसे संवाद स्‍थापित करके ही हो सकता है।लोक भाषा के ज्ञान के बिना .बिना स्‍थानीय लोगों की अपेक्षाओं को जाने इंजीनियर मात्र अव्‍यावहारिक कल्‍पनाएं ही कर सकता है।

दूसरी बात यह है कि यदि एक बालक ने बारह वर्ष तक अपनी पढ़ाई हिन्‍दी में की है तब औषधीय उपचार की तरह अंग्रेजी में इंजीनियरिंग पढ़ाने की आवश्‍यकता क्‍या है ।जब जब हिन्‍दी की बात बाती है तो अंतरराष्‍ट्रीय जुढ़ाव की बात चलने लगती है ।अब प्रश्‍न यह है कि क्‍या हिन्‍दी भाषी इंजीनियर द्वारा डिजाइन किये पुल पर किसी अंग्रेजी भाषी व्यक्‍ति को चलने में कठिनाई आयेगी।या फिर हिन्‍दी भाषी इंजीनियर द्वारा डिजाइन की गयी बस अथवा ट्रक को विदेशी जन खरीदने से हिचकेंगे और मजे की बात यह है कि विभिन्‍नउत्‍पादों को ग्राहकों के लिये अधिक सुविधाजनक बनाने केलिये उनके कार्य पटल पर हिंदी का समावेश करना होता है और इस काम की अपेक्षा भी उसी इंजीनियर से की जाती है जिसे बल पूर्वक अंग्रेजी माध्‍यम से शिक्षा दी गयी है ।ए टीएम पर हिन्‍दी में काम करने का विकल्‍प.रेलवे की सूचनाओं की हिन्‍दी में कम्‍प्‍यूटर चालित अपडेटिंगहिन्‍दी में मोबाइल पर विभिन्‍न जानकारियॉंतथा विज्ञापन जैसी अनेक बातें हैंजो आमतौर पर प्रचलित हैं। जो बात हम विश्‍व के अन्‍य देशों के लिये सोचते हैं वैसा ही दृष्‍टिकोण अन्‍य लोग हमारे बारे में रखते हैं ।अभी हाल ही में पेन्‍सिलवेनिया विश्‍वविद्यालय ने अपने एम बी ए विद्यार्थियों के लिये एक द्विवर्षीय हिन्‍दी कोर्स प्‍लान किया है जिससे भारत आने वालों को मदद मिलेगी।ऐसा विश्‍व में भारत की मजबूत आर्थिक उपस्‍थिति के कारण है।अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍थितियों में भाषाओं का आदान प्रदान तो चलता ही रहता है किन्‍तु हम अंग्रेजी कुछ ज्‍यादा ही सीखने लगे हैं।बतख को डक कहने से क्‍या लाभ हमें उससे अंग्रेजी में बात तो करनी नहीं है।उसे बतख ही कहने में क्‍या हर्ज है।

जिस भाषा में बालक चिंतन नहीं कर सकता उस भाषा में उसे ज्ञान विज्ञान पढ़ना होता है यहांतक कि वह उच्‍च कक्षाओं में गणित भी हिन्‍दी में नहीं पढ़ सकता जबकि भारतीयों ने ही गणित को यहॉं तक पहुँचाया है।प्रसिद्ध गणितज्ञ लीबनिट्ज ने कहा था यदि भारतीयों ने गणित का विकास नकिया होता तो आज हम अंधकार युग में रह रहे होते ।उसी गणित का उच्‍चतर कक्षाओं में हिन्‍दी में पढ़ना वर्जित है।भारतीयों को प्रकाश के विभिन्‍न रंगों का गुरुत्वाकर्षण का ज्ञान पहले ही से था उसे हम न्‍यूटन के नाम से अंग्रेजी में पढ़ते हैं।एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक तो उस पेड़ की टहनी भी लेआए हैंजो सेब गिरने से गुरुत्‍व बलके आविष्‍कार की कथा से जुड़ी है जबकि पश्‍चिम के लोगों का ही कथन है कि उस मौसम में वहां सेब होता ही नहीं है।इस प्रकार पराई भाषा में पढ़ने के कारण हम मानसिक रूप से पंगु होते जा रहे हैं तथा अपनी उपलब्‍धियो को भी अपना कहने में हमें संकोच होता है।

भारतेंदु का यह कथन समय की कसौटी पर कितना खरा उतरता है:

निज भाषा उन्‍नति अहै सब उन्‍नति को मूल

बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय की सूल।

7 टिप्‍पणियां:

  1. आप ने बहुत अच्छा लिखा है| अगर एक हिन्दुस्तानी सब कुछ कर सकता है तो हिंदी से संकोच क्यों?

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  2. स्वागत है आपका ब्लोग जगत में

    ज्ञानवर्धक लेख

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  3. "निज भाषा उन्‍नति अहै सब उन्‍नति को मूल
    बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय की सूल"

    शिक्षाप्रद

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  4. सत्य कह रहें हैं आप। हमें हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाऒं के तकनीकि शिक्षा में समावेश पर बल देना ही होगा
    www.bhartiyam.tk

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  5. निज भाषा उन्‍नति अहै सब उन्‍नति को मूल

    बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय की सूल।
    सत्य कहा है ।

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  6. apka yah kathan ki`jis bhasha me balak chintan nahi kar sakta us bhasha me use vigyan padhna hota hai'bahut kuch kah jata hai.sahi hai chintan se gyan me teevrata aati hai.bahut badhiya aalekh Badhai.

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  7. आप सभी पाठकों को बहुत धन्यवाद |

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