विश्व प्रसिद्ध हाकी खिलाड़ी ध्यानचंद जी ने अपने खेल का प्रारंभ कपड़े लपेट कर बनायी गयी गेंद तथा पेड़ की टहनी से बनी हाकी से अभ्यास करके किया। म्यूनिख ओलंपिक में उनकी प्रतिभा का लोहा विश्व ने माना।वह गेंद जिधर चाहते थे वहॉं हाकी के साथ साथ ले जाते थे।इससे लोगों को भ्रम हो गया कि कहीं इनकी हाकी में चुम्बक तो नहीं हैं।इस पर उन्होंने साधारण छड़ी से भी उसी प्रकार खेल कर दिखा दिया। उनके चमत्कारपूर्ण खेल से प्रभावित होकर वहॉं लोगों ने उनकी एक अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित कर दी जिसमें उनके प्रत्येक हाथ में हाकी थी।हिटलर ने उन्हें अपनी सेना में उच्च पद देने का प्रस्ताव दिया जिसे उन्होंने सहज ही ठुकरा दिया।
हमें याद है अपने कालेज के दिनों में हम लोग इस बात से बहुत गौरवान्वित होते थे कि रामनाथनकृष्णन डेविस कप के चैलेन्ज राउन्ड में हैं बाद में ऐसे अनेक अवसर आए। रमेश कृष्णन. लिएन्डर पेस महेश भूपति और यह शृंखला बढ़ती ही चली गयी। अब बैडमिन्टन की बात लें।प्रकाश पादुकोण 1980 के आसपास आल इंग्लैंड बैडमिन्टन प्रतियोगिता में शीर्ष पर रहे ।इससे अंग्रेजों को इतना धक्का लगा कि उन्होने इसका टी वी प्रसारण ही नहीं होने दिया । उनकी छड़ी का स्वागत हम खुले दिल से कैसे कर सकते हैं।इसी क्रम में शीर्षके इस अभियान को फुलेरा गोपीचंद ने और सशक्त बनाया और अब सानिया नेहवाल का नाम हमारे सामने है।
कुछ समय पूर्व हुये विश्व ओलंपिक में भारत का नाम कई प्रतिस्पर्धाओं में सामने आया। निशानेबाजी में अभिनव बिन्द्रा को स्वर्ण.विजेन्द्र को बाक्सिंग में तथा कुश्ती में सुशील कुमार को कांस्य पदक मिले।क्यूबा के लोग भी अब 'भिवानी' के बाक्सिंग रिंग के प्रति सतर्क हो गयेहैं। कहने का तात्पर्य यह है कि राष्ट्रमंडल खेलों से हमें कोई विशेष लाभ नहीं होने वाला।उपर से यह खेल एक ऐसे देश पर केन्द्रित हैं जिसके उपनिवेशवादी चरित्र तथा रंगभेदी व्यवहार से हम सब भली भॉंति परिचित हैं।इस समूह के एक अन्य देश आस्ट्रेलिया के वहॉं रह रहे भारतीयों के प्रति दुर्व्यवहार से हम सब आहत हैं।ऐसी दशा में इस छड़ी का स्वागत कर हम विश्व के सन्मुख इस प्रकार के व्यवहार के प्रति अपनी सहमति ही दर्शायेंगे और कुछ नहीं।
भारत सदा से स्वतंत्रता .समानता एवं विश्व बंधुत्वका प्रतीक रहा है ।ऐसी दशा में यदि इन खेलों को जारी ही रखना हैतो यह छड़ी भारत केन्द्रित होनी चाहिये।इससे संपूर्ण विश्व को प्रेरणा मिलेगी।
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