तकनीकी शिक्षा में हिन्दी का समावेश होना चाहिये यदि हॉं तो कितना। क्या एक इंजीनियर का हिंदी ज्ञान
उसे एक उत्कृष्ट इंजीनियर बनने में मदद करता हैअथवा यह स्वैच्छिक एवं वैकल्पिक है।क्या हम ऐसे इंजीनियर की कल्पना भी कर सकते हैं जो केवल अंग्रेजी जानता हो फिर भी सफल हो ।किस प्रोजेक्ट की कहां आवश्यकता हैइसका पता आम लोगों से बातचीत से ही लगता है।जहॉं पानी की कमी से किसानों की फसल सूख रही हो टेलीफोन के तार दौड़ाना प्राथमिकता नहीं हो सकती है।इसी प्रकार की अन्य बातें हैं लोगों की समस्याओं का ज्ञान उनसे संवाद स्थापित करके ही हो सकता है।लोक भाषा के ज्ञान के बिना .बिना स्थानीय लोगों की अपेक्षाओं को जाने इंजीनियर मात्र अव्यावहारिक कल्पनाएं ही कर सकता है।
दूसरी बात यह है कि यदि एक बालक ने बारह वर्ष तक अपनी पढ़ाई हिन्दी में की है तब औषधीय उपचार की तरह अंग्रेजी में इंजीनियरिंग पढ़ाने की आवश्यकता क्या है ।जब जब हिन्दी की बात बाती है तो अंतरराष्ट्रीय जुढ़ाव की बात चलने लगती है ।अब प्रश्न यह है कि क्या हिन्दी भाषी इंजीनियर द्वारा डिजाइन किये पुल पर किसी अंग्रेजी भाषी व्यक्ति को चलने में कठिनाई आयेगी।या फिर हिन्दी भाषी इंजीनियर द्वारा डिजाइन की गयी बस अथवा ट्रक को विदेशी जन खरीदने से हिचकेंगे और मजे की बात यह है कि विभिन्नउत्पादों को ग्राहकों के लिये अधिक सुविधाजनक बनाने केलिये उनके कार्य पटल पर हिंदी का समावेश करना होता है और इस काम की अपेक्षा भी उसी इंजीनियर से की जाती है जिसे बल पूर्वक अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी गयी है ।ए टीएम पर हिन्दी में काम करने का विकल्प.रेलवे की सूचनाओं की हिन्दी में कम्प्यूटर चालित अपडेटिंगहिन्दी में मोबाइल पर विभिन्न जानकारियॉंतथा विज्ञापन जैसी अनेक बातें हैंजो आमतौर पर प्रचलित हैं। जो बात हम विश्व के अन्य देशों के लिये सोचते हैं वैसा ही दृष्टिकोण अन्य लोग हमारे बारे में रखते हैं ।अभी हाल ही में पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय ने अपने एम बी ए विद्यार्थियों के लिये एक द्विवर्षीय हिन्दी कोर्स प्लान किया है जिससे भारत आने वालों को मदद मिलेगी।ऐसा विश्व में भारत की मजबूत आर्थिक उपस्थिति के कारण है।अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों में भाषाओं का आदान प्रदान तो चलता ही रहता है किन्तु हम अंग्रेजी कुछ ज्यादा ही सीखने लगे हैं।बतख को डक कहने से क्या लाभ हमें उससे अंग्रेजी में बात तो करनी नहीं है।उसे बतख ही कहने में क्या हर्ज है।
जिस भाषा में बालक चिंतन नहीं कर सकता उस भाषा में उसे ज्ञान विज्ञान पढ़ना होता है यहांतक कि वह उच्च कक्षाओं में गणित भी हिन्दी में नहीं पढ़ सकता जबकि भारतीयों ने ही गणित को यहॉं तक पहुँचाया है।प्रसिद्ध गणितज्ञ लीबनिट्ज ने कहा था यदि भारतीयों ने गणित का विकास नकिया होता तो आज हम अंधकार युग में रह रहे होते ।उसी गणित का उच्चतर कक्षाओं में हिन्दी में पढ़ना वर्जित है।भारतीयों को प्रकाश के विभिन्न रंगों का गुरुत्वाकर्षण का ज्ञान पहले ही से था उसे हम न्यूटन के नाम से अंग्रेजी में पढ़ते हैं।एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक तो उस पेड़ की टहनी भी लेआए हैंजो सेब गिरने से गुरुत्व बलके आविष्कार की कथा से जुड़ी है जबकि पश्चिम के लोगों का ही कथन है कि उस मौसम में वहां सेब होता ही नहीं है।इस प्रकार पराई भाषा में पढ़ने के कारण हम मानसिक रूप से पंगु होते जा रहे हैं तथा अपनी उपलब्धियो को भी अपना कहने में हमें संकोच होता है।
भारतेंदु का यह कथन समय की कसौटी पर कितना खरा उतरता है:
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय की सूल।
रविवार, 19 सितंबर 2010
शनिवार, 11 सितंबर 2010
छड़ी किसकी?
विश्व प्रसिद्ध हाकी खिलाड़ी ध्यानचंद जी ने अपने खेल का प्रारंभ कपड़े लपेट कर बनायी गयी गेंद तथा पेड़ की टहनी से बनी हाकी से अभ्यास करके किया। म्यूनिख ओलंपिक में उनकी प्रतिभा का लोहा विश्व ने माना।वह गेंद जिधर चाहते थे वहॉं हाकी के साथ साथ ले जाते थे।इससे लोगों को भ्रम हो गया कि कहीं इनकी हाकी में चुम्बक तो नहीं हैं।इस पर उन्होंने साधारण छड़ी से भी उसी प्रकार खेल कर दिखा दिया। उनके चमत्कारपूर्ण खेल से प्रभावित होकर वहॉं लोगों ने उनकी एक अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित कर दी जिसमें उनके प्रत्येक हाथ में हाकी थी।हिटलर ने उन्हें अपनी सेना में उच्च पद देने का प्रस्ताव दिया जिसे उन्होंने सहज ही ठुकरा दिया।
हमें याद है अपने कालेज के दिनों में हम लोग इस बात से बहुत गौरवान्वित होते थे कि रामनाथनकृष्णन डेविस कप के चैलेन्ज राउन्ड में हैं बाद में ऐसे अनेक अवसर आए। रमेश कृष्णन. लिएन्डर पेस महेश भूपति और यह शृंखला बढ़ती ही चली गयी। अब बैडमिन्टन की बात लें।प्रकाश पादुकोण 1980 के आसपास आल इंग्लैंड बैडमिन्टन प्रतियोगिता में शीर्ष पर रहे ।इससे अंग्रेजों को इतना धक्का लगा कि उन्होने इसका टी वी प्रसारण ही नहीं होने दिया । उनकी छड़ी का स्वागत हम खुले दिल से कैसे कर सकते हैं।इसी क्रम में शीर्षके इस अभियान को फुलेरा गोपीचंद ने और सशक्त बनाया और अब सानिया नेहवाल का नाम हमारे सामने है।
कुछ समय पूर्व हुये विश्व ओलंपिक में भारत का नाम कई प्रतिस्पर्धाओं में सामने आया। निशानेबाजी में अभिनव बिन्द्रा को स्वर्ण.विजेन्द्र को बाक्सिंग में तथा कुश्ती में सुशील कुमार को कांस्य पदक मिले।क्यूबा के लोग भी अब 'भिवानी' के बाक्सिंग रिंग के प्रति सतर्क हो गयेहैं। कहने का तात्पर्य यह है कि राष्ट्रमंडल खेलों से हमें कोई विशेष लाभ नहीं होने वाला।उपर से यह खेल एक ऐसे देश पर केन्द्रित हैं जिसके उपनिवेशवादी चरित्र तथा रंगभेदी व्यवहार से हम सब भली भॉंति परिचित हैं।इस समूह के एक अन्य देश आस्ट्रेलिया के वहॉं रह रहे भारतीयों के प्रति दुर्व्यवहार से हम सब आहत हैं।ऐसी दशा में इस छड़ी का स्वागत कर हम विश्व के सन्मुख इस प्रकार के व्यवहार के प्रति अपनी सहमति ही दर्शायेंगे और कुछ नहीं।
भारत सदा से स्वतंत्रता .समानता एवं विश्व बंधुत्वका प्रतीक रहा है ।ऐसी दशा में यदि इन खेलों को जारी ही रखना हैतो यह छड़ी भारत केन्द्रित होनी चाहिये।इससे संपूर्ण विश्व को प्रेरणा मिलेगी।
हमें याद है अपने कालेज के दिनों में हम लोग इस बात से बहुत गौरवान्वित होते थे कि रामनाथनकृष्णन डेविस कप के चैलेन्ज राउन्ड में हैं बाद में ऐसे अनेक अवसर आए। रमेश कृष्णन. लिएन्डर पेस महेश भूपति और यह शृंखला बढ़ती ही चली गयी। अब बैडमिन्टन की बात लें।प्रकाश पादुकोण 1980 के आसपास आल इंग्लैंड बैडमिन्टन प्रतियोगिता में शीर्ष पर रहे ।इससे अंग्रेजों को इतना धक्का लगा कि उन्होने इसका टी वी प्रसारण ही नहीं होने दिया । उनकी छड़ी का स्वागत हम खुले दिल से कैसे कर सकते हैं।इसी क्रम में शीर्षके इस अभियान को फुलेरा गोपीचंद ने और सशक्त बनाया और अब सानिया नेहवाल का नाम हमारे सामने है।
कुछ समय पूर्व हुये विश्व ओलंपिक में भारत का नाम कई प्रतिस्पर्धाओं में सामने आया। निशानेबाजी में अभिनव बिन्द्रा को स्वर्ण.विजेन्द्र को बाक्सिंग में तथा कुश्ती में सुशील कुमार को कांस्य पदक मिले।क्यूबा के लोग भी अब 'भिवानी' के बाक्सिंग रिंग के प्रति सतर्क हो गयेहैं। कहने का तात्पर्य यह है कि राष्ट्रमंडल खेलों से हमें कोई विशेष लाभ नहीं होने वाला।उपर से यह खेल एक ऐसे देश पर केन्द्रित हैं जिसके उपनिवेशवादी चरित्र तथा रंगभेदी व्यवहार से हम सब भली भॉंति परिचित हैं।इस समूह के एक अन्य देश आस्ट्रेलिया के वहॉं रह रहे भारतीयों के प्रति दुर्व्यवहार से हम सब आहत हैं।ऐसी दशा में इस छड़ी का स्वागत कर हम विश्व के सन्मुख इस प्रकार के व्यवहार के प्रति अपनी सहमति ही दर्शायेंगे और कुछ नहीं।
भारत सदा से स्वतंत्रता .समानता एवं विश्व बंधुत्वका प्रतीक रहा है ।ऐसी दशा में यदि इन खेलों को जारी ही रखना हैतो यह छड़ी भारत केन्द्रित होनी चाहिये।इससे संपूर्ण विश्व को प्रेरणा मिलेगी।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)