जब से हम ऑंखें खोलते हैं अंग्रेजी से साबका पड़ने ही लगता है। हम चाहें या न चाहें अंग्रेजी हमारे जीवन में स्थान बनाने लगती है।पहले हम लोगों का जन्मदिन मनाया जाता था उस दिन दिया जलाया जाता था .हमें तिल मिला हुआ दूध मिलता था घर के बने गुलगुले बॉंटे जाते थे ।अब बर्थडे मनाया जाता है.विगत आयु के वर्षों की संख्या की मोम बत्तियॉं बुझाई जाती हैं सब लोग मिल कर बाजार से मँगाया गया केक खाते हैं।हमें तो यह भी नहीं पता थाकि केक में क्या क्या पड़ता है। टीवी के एक विज्ञापन से पता चला कि वह शुद्ध मुर्गी के अंडे से बना होता है।खैर वह सब तो ठीक है।घर का खानपान छीनने के बाद अब हमारी भाषा छीनने की बारी आती है।बच्चा 'हैप्पी बर्थ डे' गीत सुनता है।शुभ जन्म दिवस तो वह बड़ा होकर जानता हैजब स्कूल में पढ़ने लगता है।इस दशा में अगर बच्चा हिंदी में फेल होने लगे तो इसमें क्या आश्चर्य।वैसे माता पिता इससे भी गौरवान्वित होते है।सोचते हैं हिन्दी की जड़ें जितनी कमजोर होंगी बच्चा अंग्रेजी पर उतना ही आश्रित होगा यह नहीं सोचते हैं कि हिन्दी परिवेश के होते हुए जो बच्चा भाषा नहीं सीख पाया वह अंग्रेजी किस प्रकार सीख पायेगा ।
यदि हम आठवीं या दसवीं कक्षा की बात करें तब अन्य विषयों के साथ साथ अंग्रेजी अनिवार्य रूप सें एक विषय के रूप में चलती है।एक प्रकार से हम अपने छ: कमरों के मकान में एक कमरा अंग्रेजी के नाम कर देते हैं वह भी आगे वाला .क्योंकि हम हमेशा सोचते हैं कि कहीं इसमें फेल न हो जायें. हिन्दी को हम सबसे पीछे वाला स्थान देते हैं ।यह तो अपनी ही भाषा है।हमें सीखने की क्या जरूरत।हम टी वी देखते रहते हैं.पिक्चरें देखते रहते हैं. देखो हम सब समझ जाते हैं।फिर पढ़ने की क्या जरूरत।अंग्रेजी हमें आती नही (और शायद कभी आयेगी भी नहीं उसे हमें पढ़ना चाहिये खूब पढ़ना चाहिये .पढ़ते जाना चाहिये(शायद कभी आ जाए.वैसे न आए तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता ) ।हिन्दी बिल्कुल न पढ़ने के कारण कभी कभी हम फेल भी हो जाते हैं . हिन्दी मॉं कहती हैंबेटा कभी कभी तो ध्यान दिया करो बाहर ही घूमते रहते हो कभी कभी तो घर आकर पढ़ लिया करो नहीं तो फिर फेल हो जाओगे।सारी अंग्रेजी धरी रह जायेगी।
एक नेताजी का किस्सा हैवह विदेश से लौटे तो लोगों ने उनसे वहॉं की प्रगति के बारे में पूछा .उन्होंने कहा वहां के क्या कहने.वह हर बात में हमसे बहुत आगे हैं मगर एक बात जो सबसे बड़ी है वह यह कि वहॉं छोटा से छोटा बच्चा अंग्रेजी बोल लेता है।आज हर अभिभावक का यही सपना है।चाहे वह गांव का सुखी किसान हो जिसकी दैनिक आय 26/-रु से अधिक हो अथवा शहर का खाता पीता व्यक्ति जिसकी दैनिक आय 32/-रु से अधिक हो सबका सपना है कि बच्चे को सरकारी स्कूल में न पढ़ाकर प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया जाय जहॉं अंग्रेजी पर समुचित ध्यान दिया जाता है।
बात छ:कमरों के मकान की चल रही थी।माध्यमिक स्तर पर पॉंच ही विषय रह जाते हैं.अब मकान पॉंच ही कमरों का रह गया।अभी भी ड्राइंग रूम में अंग्रेजी ही रहती है।इम्तहान से ठीक पहले जब हम फाइनल रिवीजन करते हैं और सभी विषयों को मुश्किल से एक एक .दो दो दिन ही दे पाते हैंउन दिनों में भी आमतौर पर हम रोज एक दो घंटे निकाल कर अंग्रेजी कोदेते हैं।वैसे अंग्रेजी का काम : ओवरआल परसेन्टेज घटाने का ही रहता है।ग्रेजुएशन स्तर पर अब तीन ही विषय रह जाते हैं।अब तीन कमरों के मकान में कला संकाय के वि़द्यार्थियों केपास तो फिर भी अंग्रेजी से पीछा छुड़ाने का आप्शन रहता है विज्ञान में तो तीनों विषय अंग्रेजी में ही पढ़ने पडते हैं । इस प्रकार अब अंग्रेजी सभी कमरों को घेर लेती है।विद्यार्थी बेचारा जाये तो कहॉं जाये।उसकी कोई बचत नहीं है।किसी प्रकार प्रोफेशनल अथवा उच्च शिक्षा पूर्ण कर वह बाहरी दुनिया में प्रवेशकरता है ।पढ़ाई के दौरान कुछ बातें उसे समझ आती हैं कुछ नहीं भी आती हैं।इस आधे अधूरे ज्ञान के साथ वह दुनियॉं भर की चुनौतियों का सामना करने के लिये तत्पर होता है।
बेरोजगारी की स्थिति में तरह तरह के उपदेश सुनने पड़ते हैं।तुम्हारी अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं है।कितनी ,जितनी जाब मिलने के लिये आवश्यक है।वह सोचता हैबाहरी देशों से भी से भी काफी अनएम्प्लायमेंट की खबरें आती रहती हैं।(शायद उनकी अंग्रेजी अधिक अच्छी है इसलिए,वह सोचता है।)अब उसे काम मिल गया है।वह एक इंजीनियर है,उसे एक पुल बनाने का काम मिला है।पिलर में क्रैक आ गया है।अब वह क्या करे। अंग्रेजी में उसकी सोचने की क्षमता सीनियर उसे बताते हैं इसमें कौन सी बात है क्रैक के अंदर कुछ लोहा.पुट्टी वगैरह भर दो सब ठीक हो जायेगा।मगर तरकीब काम नहीकरती।विशेषज्ञ स्तर पर हल निकालने के बजाय समस्याओं के सतही समाधान निकाले जाते हैं।कई बार मार्केटिंग स्तर पर समाधान निकाले जाते हैं।मार्केट वालों के पास जाकर उनसे अपनी समस्याएं बताते हैं उनके इंजीनियर आवश्यकता से अधिक बढ़चढ़ कर समाधान करते रहते हैंऔर इस तरह अपने प्राडक्ट उनकी समस्याएं हल करने के बहाने खपाते रहते हैं।रेलवे को एक शक्तिशाली इंजन की आवश्यकता है उससे दस गुना शक्ति का इंजन आ जायेगा।उसमें बहुत तेजी से दौड़ने की क्षमता है भले ही पटरियॉं उस लायक नहीं हैं।कहने का तात्पर्य यह हैकि छोटी मोटी समस्या का भी लंबा चौड़ा समाधान खोजा जायेगा।पहले एक कार्टून देखा था बच्चा अपने पिताजी से कह रहा है .पिता जी पहाड़ा याद करने में बहुत झंझट है आप मुझे कैलकुलेटर क्यों नहीं ला देते ।अब यही काम शिक्षाविद् कर रहे हैं ।प्राइमरी स्कूल में टीचर नहीं हैं ।यह कमी वह बच्चों को लैपटाप दे कर पूरी कर रहे हैं।
प्रोफेशनल सेवाओं में अधिकतर पढ़ाई अंग्रेजी में होती हैकिन्तु हम हिन्दी में सोचते हैं।अत:विदेशी भाषा में प्राप्तकिया गया ज्ञान हमारी चिन्तन प्रक्रिया का अंग नहीं बन पाता।।इसी कारण जब हम कार्यक्षेत्र में आते हैं तब हम प्रोफेशनल ज्ञान के बजाय अपने सामान्य ज्ञान के आधर पर समस्याऍंहल करने ने की कोशिश करते हैं।
इन स्थितियों से निकलने के लिये हमें अंग्रेजी पर जरूरत से अधिक आश्रित होने के बजाय हिंदी को उचित एवम् गौरवपूर्ण स्थानदेना होगा ताकि हमारा जीवन सरल सुंदर एवम् सार्थक बन सके।